जिला सतर्कता समिति में प्रगति रिपोर्ट भी लेकर नहीं आते अधिकारी
भावेश जाट
उदयपुर। जिला सतर्कता समिति की बैठक में अधिकारियों की उदासीनता के चलते परिवादियों को निराशा हाथ लग रही है। कई समस्या का पूरी तरह निराकरण होने से पहले ही प्रकरण ड्रॉप कर दिए जाते हैं। इसका कारण कलेक्टर साहब खुद परिवादी की शक्ल देखकर तिलक निकाल देते हैं, यदि परिवादी पेठ रखने वाला या रसूख होता है तो उसकी समस्या का हाथों-हाथा निदान हो जाता है परंतु कई मामलों में गांव से आने वाले लोगों को अदालत में पेशियों की तरह इस बैठक में उपस्थित होना पड़ता है और कई माह बीत जाने के बाद भी उनकी समस्या का निराकरण नहीं हो पाता है।
राज्य सरकार ने जनसमस्याओं के निराकरण के लिए प्रत्येक माह के दूसरे गुरुवार को जिला कलेक्टर की मौजूदगी में अधिकारियों की बैठक में समस्याओं के निराकरण का आदेश जारी किया हुआ है। क्रमददगारञ्ज की गत छह माह की पड़ताल में सामने आया कि इस बैठक में शिकायतें और समस्याएं लेकर आने वाले लोगों को हर माह अदालत की पेशियों की तरह पांच से सात बार आने के बाद भी निराशा ही हाथ लगती है। यहां तक कि इस सतर्कता समिति की बैठक में संबंधित अधिकारी को सूचना देने के बाद भी वे प्रगति रिपोर्ट लेकर नहीं आते हैं, लेकिन समिति अध्यक्ष (कलेक्टर) उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं करते हैं। यदि अधिकारी संबंधित अधिकारी बैठक में आ जाए या वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से प्रकरण पर चर्चा भी कर ले तो तुरंत समिति अध्यक्ष जिला कलेक्टर द्वारा उसका निराकरण मानकर ड्राप कर देते हैं। हर माह होने वाली बैठक में औसतन 10 से 12 प्रकरणों को ऐसे ही ड्रॉप कर दिया जाता है, जिनमें आधे लोगों को ही राहत मिल पाती है, शेष असंतुष्टों के हाथ केवल निराशा ही लगती है। इस तरह सतर्कता समिति और उसके अध्यक्ष का यह रवैया चेहरा देखकर तिलक निकालने जैसा हो रहा है। सतर्कता समिति की बैठक में अधिकारियों के यह हाल है कि आधे से अधिकारी तो बैठक में उपस्थित ही नहीं हो रहे हैं।
गत माह नौ जून को सतर्कता समिति की बैठक में जिन प्रकरणों पर चर्चा की गई उनमें से कई परिवादियों को राहत नहीं मिलने के बावजूद उन्हें ड्रॉप कर दिया गया। आश्चर्यजनक तो यह है कि एक प्रकरण की प्रगति रिपोर्ट मिलने के बाद पाया गया कि प्रकरण के निस्तारण में कतिपय कारणों से देरी हो रही है। इसके बावजूद प्रकरण को ड्राप कर दिया गया। इस हालत में अन्य बैठकों निस्तारित किए मामलों पर भी अंदाजा लगाना आसान है कि इनकी संख्या क्या होगी।
नौ जून को ड्राप किए प्रकरण जिनमें नहीं मिली राहत
केस एक: प्रकरण सतर्कता/डीवीसी/10/2016 में परिवादी मदनलाल का कहना है कि समिति अध्यक्ष ने जिन मामलों को निपटाया हुआ मानकर ड्राप कर दिया, लेकिन वास्तव कहूं तो मैं आज तक की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हंू।
केस दो : प्रकरण सतर्कता/डीवीसी/15/2016 के परिवादी मोहनलाल ननामा ने बताया कि अधिकारी मामलों को दाबा रहे हैंैं व मुझे पर भी दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन सतर्कता समिति भी इस ओर ध्यान नहीं देकर स्थानीय अधिकारियों के इशारों पर ही काम कर रही है।
केस तीन: प्रकरण सतर्कता/डीवीसी/06/2016 के परिवादी मांगीलाल लोहार के अनुसार सतर्कता समिति ने यह माना कि वास्तव में कार्य में जान-बूझकर विलंब किया जा रहा है। इसके बावजूद भी प्रकरण का निस्तारण किया हुआ मानकर उसे ड्राप कर दिया है। राजकीय सेवा में लापरवाही की हद पार होने के बाद अदालत ही अंतिम आसरा है।
केस चार : प्रकरण सतर्कता/डीवीसी/18/2016 की परिवादी रेखा पटेल के अनुसार स्थानीय स्तर से लेकर कलेक्टे्रट तक एक जैसा माजरा है। जांच करने वाले भी ईमानदार नहीं है। ऐसे में सही व्यक्ति के साथ न्याय नहीं हो पाता है।
हां, कुछ मामलों में अधिकारियों के जवाब से संतष्ट होने पर ऐसा किया जाता है। फिर भी यदि किसी को राहत नहीं मिली हो तो वापस आ सकता है।
-रोहित गुप्ता, कलेक्टर उदयपुर